एनिमेटर और ग्राफिक डिजाइनर श्वेता चावड़े को किशोरावस्था में ओस्टियोसारकोमा कैंसर स्टेज 2 का निदान मिला। यह एक ख़तरनाक आक्रामक किस्म का हड्डी का कैंसर है। श्वेता अपने जीवन के उस दौर को याद करते हुए दस साल से कैंसर मुक्त होने का कृतज्ञता और आशावादी भाव से जश्न मना रहीं हैं।
सन् 2008 की गर्मियों के दिनों की बात है। मैं 15 साल की थी और मैंने अभी-अभी एसएससी बोर्ड की परीक्षाएं पूरी की थीं। एक दिन मेरे घुटने में मामूली सा दर्द होने लगा -- ऐसा कुछ नहीं था जिससे मुझे लगे कि यह किसी भी तरह की बड़ी बीमारी का संकेत है| यह दर्द मेरे दाहिने घुटने में था। मैं नियमित तौर पर खेलकूद में भाग लिया करती थी इसलिए लगा कि दर्द किसी चोट या खिंचाव के कारण हुआ होगा। लेकिन समय के साथ दर्द बढ़ता गया और इतना असहनीय हो गया कि मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। आखिरकार, एक महीने बाद, जब किसी भी गोली या मरहम से फायदा नहीं हुआ और दर्द बना रहा तब हमने एक्स-रे करवाया|
मेरी दुनिया बिखर गई
हम एक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर से मिले और उन्होंने मुझे एमआरआई करवाने के लिए भेजा। इसके बाद बायोप्सी हुई और उस रिपोर्ट ने मुझे बुरी तरह से डरा दिया। मुझे पता चला कि मेरे घुटने के ठीक नीचे एक बड़ा ट्यूमर था। इस रिपोर्ट की पुष्टि के लिए हम मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में एक कैंसर विशेषज्ञ के पास गए, लेकिन जैसी आशंका थी, निदान वही रहा। मुझे स्टेज 2 का ओस्टियोसारकोमा यानि एक खतरनाक और आक्रामक प्रकार का हड्डी का कैंसर था। उस 12 सितंबर 2008 के दिन मेरी दुनिया पूरी तरह से बिखर गई।
मैं पंद्रह साल की एक स्वस्थ और सक्रिय लड़की थी जो बास्केटबॉल खिलाड़ी, स्प्रिंटर और कलाकार थी। मैं शायद ही कभी बेकार बैठा करती थी। छोटी सी उम्र से ही मेरा लक्ष्य एक एनिमेटर बनने का था। मैं अपने लिए कहानियां, किरदार और टीवी शो बनाती थी। लेकिन इस बड़ी और जानलेवा बीमारी का पता चलने से मेरे सपने मानो धुंधले होने लगे। "आपको कैंसर है" - यह सुनने के बाद कुछ भी और सुनना मुश्किल था। यह वाक्य मेरे और मेरे परिवार के लिए आंधी की गरज की तरह था लेकिन हमने मिल कर फैसला किया कि हम हार नहीं मानेंगे।
इलाज के वो मुश्किल दिन
तीन दिन बाद, मेरा तीन महीनों तक चलने वाला कीमोथेरेपी का कठिन इलाज शुरू हुआ। इस दौरान मैं लगातार बीमार रहती थी और बिस्तर पर पड़ी रहती थी। इस इलाज से मेरा शरीर इतना कमज़ोर हो गया था कि मुझे कोई भी दूसरी बीमारी आसानी से हो सकती थी। मेरे सारे बाल झड़ गए थे और वज़न तेजी से गिर कर 29 किलोग्राम हो गया था! 3 दिसंबर 2008 को मेरी सर्जरी हुई और डॉक्टरों ने मेरे टिबिआ (टांग के निचले भाग में घुटने और पैर के बीच वाली एक हड्डी) के एक बड़े हिस्से के साथ पूरे ट्यूमर को निकाल दिया और इसकी जगह एक टाइटेनियम इम्प्लांट लगाया। एक प्लास्टिक सर्जरी भी की गई। मेरे बाएं पैर की त्वचा का एक टुकड़ा निकाल कर उसे दाहिने पैर में लगाया गया। मुझे आज भी याद है बेतहाशा पिटते हुए जानवर की तरह मेरा चीखना-चिल्लाना! उन दिनों मैंने बहुत दर्द झेला। ड्रेसिंग लगवाना, खून बहना, थक के चकनाचूर होना, गुस्सा और हताशा -- मुझे उन दिनों का हर एक मिनट याद है। मुझे वह एक घटना भी याद है जब मैं लोगों को टहलते हुए देखती थी और अपने बारे में सोचती थी, "मैं इस तरह दोबारा कभी नहीं चल पाऊंगी"। अपनी उम्र की उन लड़कियों को देखकर, जो अपने बालों को स्टाइल करती थीं, शानदार कपड़े पहनतीं, दोस्तों के साथ घूमती-फिरती थीं, मैं बहुत उदास हो जाती थी|
कैंसर मरीजों की भावनात्मक बेहतरी के लिए आर्ट एंड मूवमेंट थेरेपी
सर्जरी के बाद मुझे सहना पडा कीमोथेरेपी की छह और साइकिल, नौ महीने की फिज़ियोथेरेपी, और खूब सारा दर्द। आखिरकार सितंबर 2009 में मेरा इलाज पूरा हुआ। अब मुझे थोड़ी आजादी मिली। इसके कुछ समय बाद ही मैंने बिना किसी सहारे के फिर से चलना शुरू किया - पहले कम दूरी तक और फिर पूरी तरह से! मेरे इलाज के दौरान मेरे परिवार और करीबी दोस्तों ने बिना किसी संकोच के मुझे लगातार सहारा दिया। इस अनिश्चितताओं और डर से भरे समय को मैं उम्मीद, साहस, अपने प्रियजनों की मदद और कार्टून बनाने के अपने शौक के सहारे पार कर पाई।
मैंने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की और जुलाई 2014 में मैंने एनीमेशन और विजुअल इफेक्ट्स में अपना बीए पूरा किया। मैंने टीएमएच के बच्चों के कैंसर सपोर्ट ग्रुप के साथ भी स्वयं-सेवक के रूप में काम किया। इस ग्रुप के सदस्य मेरी तरह बचपन में कैंसर का सामना कर उस पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। इन लोगों से मिलकर मुझे आत्मविश्वास और सकारात्मकता का एहसास होता है। मुझे लगता है कि - "मैं अकेली नहीं हूँ"। मैं साल में एक बार फॉलोअप के लिए जाती रहती हूं और कई तरह के टेस्ट करवाती हूं।
कैंसर पर जीत का एक दशक
साल 2018-19 कैंसर पर मेरी जीत का एक दशक पूरा हुआ है। कैंसर-मुक्त रहते हुए मैंने अपने जीवन के दस साल बिता दिए हैं और मैं एक दीर्घ-कालिक सर्वाइवर हूँ। इस संघर्ष के बाद मेरे जीवन में जश्न की शुरूआत हुई जब मेरी अपने सबसे अच्छे दोस्त सतीश पाठक से सगाई हुई। वो एक बेहतरीन इंसान हैं। उनका वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। वे मानसिक रुप से बेहद मज़बूत हैं, हर किसी की सहायता करते हैं, और मेरा बहुत ख़याल रखते हैं । खैर, यह अपने आप में एक कहानी है। 10 साल!! मुझे अब भी विश्वास नहीं होता कि मैं अब भी अपने पैरों पर खड़ी हूं। यह कोई सपना तो नहीं? नहीं! मैं कैंसर से कहना चाहती हूं कि, “तुम्हें लगा था कि यह बेवकूफ तुमसे कभी जीत नहीं पाएगी?”
मैं उन गिने-चुने लोगों में से एक हूं जो अपने बचपन के शौक और जुनून को अपना करियर बना पाए हैं – मुझे खुशी है कि मैं पेशे से एक एनिमेटर हूं। मैंने फैसला करा था कि कोई भी शारीरिक अक्षमता मुझे वो करने से रोक नहीं पाएगी जो मैं करना चाहती हूं, इसलिए मैं हर रोज 4 घंटे मुंबई की भीड़ में यात्रा कर अपने काम पर जाती हूं। हालांकि मैं पूरी सावधानी बरतती हूं मगर मैंने अपने लिए कोई हद नहीं बांध रखी है। सतीश और मैं अब "फूड मी नाउ" नामक एक यू-ट्यूब फूड रेसिपी चैनल चलाते हैं। मैं एक स्वतंत्र चित्रकार भी हूं। मैं कार्टून कैरिकेचर, ग्राफिक डिज़ाइन, लोगो डिज़ाइन, ब्रांडिंग आदि से जुड़ा काम करती हूँ। मैंने एसआईओपी - टोरंटो, कनाडा में इंटरनेशनल पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी सोसायटी में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। वह मेरी पहली हवाई यात्रा थी और मैं पहली बार एयरपोर्ट पर गई थी!!
मेरी कहानी कोई अनोखी नहीं है। कैंसर से कई सर्वाइवर मेरी तरह ही चुनौतियों का सामना करते हैं। कुछ तो इससे भी ज्यादा। पर मैं सौभाग्यशाली थी कि मेरा इलाज सही समय पर हो पाया और सबसे अच्छे डॉक्टरों ने करा। अफ़सोस, कैंसर के कई सर्वाइवर को कैंसर और इसके डरावने पहलुओं पर अकेले ही जानकारी खोजनी और समझनी पड़ती है। वे उतने भाग्यशाली नहीं हैं जितनी मैं रही हूं। कैंसर आपके लिए दो काम कर सकता है - या तो आपको मजबूत बना देता है या आपको पागल बना देता है। मुझे विश्वास है कि मैंने दोनों का स्वाद चखा है। लेकिन अगर भगवान ने किसी उद्देश्य के लिए मेरे साथ ऐसा किया है तो अपने इस अनुभव का उपयोग सही ढंग से न करना बहुत बड़ा अनर्थ होगा। आपके जीवन का हर बुरा अनुभव आपको एक अच्छी दिशा की ओर ले जाता है और हर घटना के पीछे कुछ कारण छिपा रहता है। मेरा विश्वास कीजिए - मैंने इसे जिया है!