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डॉ। जयंती मणि कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में न्यूरोलॉजी कंसलटेंट हैं, और इस लेख में एपिलेप्सी वाली महिलाओं के बच्चे नहीं हो सकते हैं और उनके बच्चे को स्तनपान नहीं करा सकते हैं, ऐसी चिंताओं को संबोधित करती हैं। वह कहती हैं कि दवा संबंधी सही सलाह, पूर्व नियोजित गर्भावस्था और उचित निगरानी हो तो मिर्गी रोग वाली ज्यादातर महिलाओं की गर्भावस्था ठीक गुज़र सकती है और वे स्वस्थ बच्चे पैदा कर सकती हैं।
क्या एपिलेप्सी वाली महिलाओं के लिए गर्भवती होना सुरक्षित है?
एपिलेप्सी के उपचारों में प्रगति हुई है और न्यूरोलॉजिस्ट और प्रसूति विज्ञानी (ओब्स्टेट्रीशियन) द्वारा सम्पूर्ण देखभाल के साथ, अब एपिलेप्सी वाली महिलाओं (वूमेन विथ एपिलेप्सी, डब्ल्यूडब्ल्यूई) के लिए गर्भावस्था पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित है। एपिलेप्सी-रोधी दवाओं (एंटी-एपिलेप्सी ड्रग्स, एईडी) लेने वाली एपिलेप्सी वाली महिलाओं में से 90 प्रतिशत से अधिक का एक सामान्य गर्भावस्था होता है और वे स्वस्थ शिशुओं को जन्म देती हैं। पर एपिलेप्सी होने से और एईडी दवा लेने से बच्चे के लिए कुछ जोखिम होता है। एपिलेप्सी वाली माताओं के शिशुओं को अन्य माताओं के शिशुओं के मुकाबले थोड़ा ज्यादा जोखिम होता है। लेकिन आधुनिक मेडिकल टेक्नोलॉजी की सहायता से इन उच्च जोखिम वाले गर्भधारण की पहचान जल्दी हो सकती है और उचित हस्तक्षेप करना संभव है। अच्छे, आधुनिक उपकरणों वाले अस्पतालों में उच्च जोखिम वाले मामलों में सुरक्षित प्रसव और प्रसव के बाद नवजात शिशु की देखभाल ठीक से की जा सकती है।
एपिलेप्सी वाली माताओं में सभी गर्भधारण को अच्छे, आधुनिक उपकरणों वाले प्रसूति केंद्रों में उच्च जोखिम वाले मामलों के रूप में प्रबंधित किया जाना चाहिए।
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क्या एपिलेप्सी वाली महिलाओं को गर्भ धारण करने में अधिक मुश्किल होती है? क्या उनमें बांझपन का खतरा ज्यादा होता है?
यह एक गलत धारणा है कि एपिलेप्सी वाली महिलाएं बाँझ होती हैं (उनके संतान नहीं हो सकता हैं) । हालांकि यह सच है कि एपिलेप्सी वाली महिलाओं में प्रजनन दर सामान्य आबादी से थोड़ा कम होता है (85%), इस फर्क का एक महत्वपूर्ण कारण सामाजिक हो सकता है। संभव मेडिकल कारणों में हैं इन महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम का उच्च दर और कुछ हार्मोनल कारक जिन के कारण गर्भधारण करना मुश्किल होता है। एक और शायद अधिक महत्वपूर्ण कारण सामाजिक और सांस्कृतिक है - एपिलेप्सी से जुड़ी गलत धारणाएँ, कलंक और भय से संबंधित -जिन के कारण एपिलेप्सी वाली महिलाएं गर्भवती होने से कतराती हैं।
क्या एपिलेप्सी वाली महिलाओं को पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) होने की अधिक संभावना होती है, जिससे प्रजनन संबंधी विकार होते हैं?
एपिलेप्सी वाली महिलाओं में रिप्रोडक्टिव एंडोक्राइन डिसफंक्शन (प्रजनन संबंधी अंतःस्रावी सिस्टम का ठीक से काम नहीं करना ?) एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पोली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) सामान्य महिला आबादी में लगभग 4% से 18% में पाई जाती है और एपिलेप्सी वाली महिलाओं में 10% से 20% तक है। इस अंतर के अनेक संभावित कारण हैं (यह बहुघटकीय है), विशेष रूप से हार्मोन संबंधी मुद्दे। एपिलेप्सी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाओं का (खासकर वैल्प्रोएट का) वजन बढ़ना और एंड्रोजन के स्तर के बढ़ने से संबंध हैं - और ये समस्याएँ पीसीओएस (PCOS) में भी देखी जाती हैं। पर अब तक उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह स्थापित नहीं किया गया है कि एंटीसीज़र दवाएं पीसीओएस का कारण हैं ।
गर्भावस्था के दौरान महिलाएं अपने सीज़र कैसे प्रबंधित करती हैं?
गर्भवती महिलाओं का सीज़र से बचना बहुत ही जरूरी है और इसलिए यह अत्यावश्यक है कि गर्भधारण से पहले ही गर्भावस्था के लिए उपयुक्त एंटीसीज़र दवाएं शुरू की जाएं और इन्हें पूरी गर्भावस्था के दौरान जारी रखा जाए। किसी भी परिस्थिति में इन दवाओं को अचानक बंद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस से बहुत गंभीर सीज़र हो सकते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट से नियमित सलाह लें, ताकि न्यूरोलॉजिस्ट स्थिति पर नजर रखें और आवश्यकता के अनुसार दवा की सही, अनुकूलित खुराक दें। गर्भवती महिला को पर्याप्त नींद लेनी चाहिए। दवा को अचानक नहीं रोका जाना चाहिए। यदि दुर्भाग्य से कोई सीज़र हो, यह नोट करें कि भ्रूण (पेट के बच्चे) को नुकसान पहुँचने की संभावना तब ज्यादा है यदि सीज़र लंबे समय तक चले या गर्भवती महिला को शारीरिक चोट लगे (जैसे कि सीज़र में गिर जाने की वजह से) । गर्भवती महिला में सीज़र के प्रबंधन का एक मुख्य पहलू - अन्य लोगों के सीज़र प्रबंधन जैसे - फर्स्ट ऐड (प्राथमिक चिकित्सा) का तत्काल मिलना है।
क्या एंटीपीलेप्टिक दवाओं (एईडी) से बच्चे पर कोई दुष्प्रभाव पड़ सकता है?
गर्भावस्था के दौरान एईडी उपचार कैसा दिया जाए यह दो पहलूओं के बीच संतुलन बिठाने की बात है - एक तरह भ्रूण (गर्भस्थ बच्चे) पर दवा के हानिकारक प्रभाव (टेराटोजेनिक), और दूसरी ओर गर्भवती महिला के सीज़र नियंत्रित रखने के लिए दवा की आवश्यकता । मुख्य चिंता है कि गर्भ में बड़े हो रहे बच्चे में दवा के कारण शारीरिक दोष (विरूपजनन, टेराटोजेनेसिस) न हों और बच्चे के संज्ञानात्मक विकास में समस्या न हो। वर्तमान में सुरक्षित और असुरक्षित दवाओं पर अधिक जानकारी उपलब्ध है। सिर्फ एक प्रकार की या कम प्रकार की दवाओं वाला उपचार अनेक प्रकार की दवाओं के उपचार से अधिक सुरक्षित है। कुछ दवाओं में हानि की संभावना का सम्बन्ध दवा की खुराक से है। अधिकतम जोखिम गर्भाधान और गर्भावस्था के पहले 3 महीनों के बीच होता है। इसलिए, पूर्व-गर्भाधान परामर्श महत्वपूर्ण है, और इस दौरान उपचार को उचित संशोधन करना चाहिए है। बिना डॉक्टर की सलाह के गर्भावस्था के दौरान सीज़र की दवाओं को अचानक बंद नहीं करना चाहिए, न ही दवा की मात्रा को बदलना चाहिए।
क्या एपिलेप्सी वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म दोष (बर्थ डिफेक्ट) या विकास संबंधी समस्याओं का खतरा अधिक होता है?
सामान्य आबादी में 2% -3% संभावना है कि बच्चे में जन्म दोष (बर्थ डिफेक्ट) होता है। एपिलेप्सी वाली महिलाओं में, यह जोखिम सिर्फ एक प्रकार की दवा वाले उपचार के केस में 4- 7% है, और यदि महिला कई प्रकार की दवाओं का उपचार कर रही हैं तो यह जोखिम 15% तक बढ़ जाता है। एंटीसीज़र दवाएं लेती हुई एपिलेप्सी वाली महिलाओं में 85% के सामान्य बच्चे होते हैं। गर्भावस्था के पहले 3 महीनों में जोखिम विशेष रूप से अधिक है। वल्प्रोएट लेने वाली गर्भवती महिलाओं के बच्चों में बुद्धि और व्यवहार सहित विकासात्मक समस्याओं पर कुछ असर हो सकता है, और यह असर कितना होगा, यह दवा की खुराक पर निर्भर है - यह जोखिम गर्भावस्था की पूरी अवधी में बना रहता है।
क्या गर्भावस्था के कारण सीज़र का नियंत्रण पहले से खराब हो सकता है?
अधिकाँश महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान सीज़र आवृत्ति (सीज़र कितनी बार होता है) या तो पहले जितनी रहती है या उसमें कुछ गिरावट होती है। परन्तु कुछ महिलाओं में सीज़र बढ़ सकते हैं। सीज़र के संभावित ट्रिगर के कई कारक हो सकते हैं, जिसमें शामिल हैं हार्मोन के स्तरों में परिवर्तन, शरीर में पानी और सोडियम प्रतिधारण, तनाव और रक्त में एंटीपीलेप्टिक दवाओं के स्तर में कमी। यह नोट करा गया है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के 9 महीने पहले से ही सीज़र से मुक्त रहती हैं, उन में गर्भावस्था के दौरान सीज़र से मुक्त रहने की बहुत अधिक संभावना होती है। पर्याप्त नींद न लेना और निर्धारित दवाइयाँ ठीक समय से न लेना सीज़रडॉक्टर से अधिक होने के कुछ सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। एपिलेप्सी वाली महिलाओं को न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करना चाहिए ताकि दवाओं और उनकी खुराक को अनुकूलित किया जाए। इसके अलावा डॉक्टर से सलाह करके उचित मात्रा में विटामिन सप्लीमेंट और फोलिक एसिड लेना जरूरी है। धूम्रपान से बचना चाहिए। ऐसा पौष्टिक, संतुलित आहार लें जो वजन ठीक तरह से बनाए रखे - यह माँ और बच्चे दोनों के लिए बेहतर है।
क्या एपिलेप्सी वाली महिलाओं को बच्चे को स्तनपान कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए?
स्तनपान मातृत्व के अनुभव का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह शुरुआती महीनों के दौरान मां और बच्चे के बीच बंधन (बोन्डिंग) स्थापित करने में मदद करता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार एईडी या सीज़र की दवाएं ले रही एपिलेप्सी वाली महिलाएं स्तनपान करा सकती हैं। ध्यान रहे, माँ कौन सी और कितनी एआईडी ले रही हैं, स्तनपान के दौरान बच्चे को इन दवाओं से संपर्क (एक्सपोज़र) होगा । आमतौर पर यह काफी कम होता है और शायद ही इस से अतिरिक्त समस्या हो, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान भी बच्चे को नाल (प्लेसेंटा) के माध्यम से दवा के संपर्क रहा था।
यह सलाह दी जाती है कि मां बच्चे का सबसे लंबे नींद अंतराल की शुरुआत में दवा लेने की कोशिश करें, खासतौर पर बेडटाइम फीडिंग के ठीक बाद। यह सलाह उस स्थिति के लिए है जब दवा दिन में सिर्फ एक बार ली जा रही है। यदि दवाएँ दिन में एक से अधिक बार ली जाती हैं, तो दवा लेने से तुरंत पहले बच्चे को स्तनपान कराएँ। इस समय दवा का स्तर सबसे कम होने की संभावना है। स्तनपान कराने के साथ-साथ कुछ फॉर्मूला मिल्क (बोतल का दूध) देने के बारे में भी सोचा जा सकता है।
एपिलेप्सी वाली महिलाएं जोखिम कम करने के लिए और सामान्य गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिएकौन से तरीके अपना सकती हैं?
- गर्भाधान से पहले न्यूरोलॉजिस्ट से पूर्व-गर्भाधान (प्री-कन्सेप्शन) परामर्श प्राप्त करें ताकि दवा के डोस को ऐसे एडजस्ट करा जा सके जो सीज़र नियंत्रण के लिए सबसे उचित हो।
- नियोजित गर्भावस्था - आदर्श यही होगा कि एपिलेप्सी वाली महिला माँ बनने की कोशिश करने से पहले अपने न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करें।
- बच्चे की कोशिश करते समय और गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से फोलिक एसिड सप्लीमेंट लेना चाहिए। डॉक्टर से सलाह करके डोस पता चलाएं।
- एंटीपीलेप्टिक दवा डॉक्टर के सलाह के अनुसार नियमित लेना - दवा रोक देने से ब्रेकथ्रू सीज़र पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के दौरान सीज़र पड़ने से अजन्मे बच्चे पर संभव हानि एईडी के संभव दुष्प्रभाव से अधिक है।
- भ्रूण की जांच- भ्रूण की विसंगतियों की जल्द-से-जल्द पहचान कर पाने के लिए डॉक्टर द्वारा बताये गए उपयुक्त अंतराल पर रक्त परीक्षण और सोनोग्राफ करवाएं।
- डॉक्टर द्वारा निर्धारित विटामिन सप्लीमेंट लें।
- नींद की कमी और तनाव सीज़र के प्रमुख ट्रिगर हैं और गर्भावस्था में इन से बचना चाहिए।
- कभी कभी डॉक्टर यह सलाह दे सकते हैं कि गर्भावस्था के दौरान रक्त में दवाओं के स्तर की भी निगरानी रखी जाए।
- प्रसव की योजना ऐसी बनाएं जिस से प्रसूति किसी प्रसूति विज्ञानी (ओब्स्टेट्रीशियन) द्वारा एक ऐसे अच्छे केंद्र में हो जहां प्रसव के लिए सभी सुविधा और आवश्यक मशीन हों और नवजात शिशु को मॉनिटर करने के लिए सभी उपयोगी यन्त्र हों।
एपिलेप्सी वाली महिलाओं और गर्भावस्था सम्बंधित किस प्रकार की गलत धारणाएं प्रचलित हैं?
गलत धारणा - सीज़र वाली दवा लेने वाली महिलाएं सुरक्षित रूप से बच्चे नहीं पैदा कर सकती हैं क्योंकि ये दवाएं बच्चे को नुकसान पहुंचाती हैं।
तथ्य- नियोजित गर्भधारण और दवाओं पर सही सलाह प्राप्त करते रहने से, और गर्भावस्था, प्रसव और उसके बाद उचित निगरानी के सहारे से अधिकांश एपिलेप्सी वाली महिलाओं के सुरक्षित रूप से सामान्य बच्चे हो सकते हैं।
गलत धारणा - अगर मां को एपिलेप्सी है तो बच्चे को भी एपिलेप्सी होगी।
तथ्य - केवल कुछ ही प्रकार की एपिलेप्सी हैं जिन में यदि परिवार के कई सदस्यों को सीज़र होते हैं तो बच्चों को सीज़र होने का अधिक जोखिम होता है। एपिलेप्सी वाली अधिकाँश महिलाओं के बच्चों को एपिलेप्सी नहीं होती।
भारत में प्रजनन आयु वर्ग में एपिलेप्सी वाली महिलाओं की अनुमानित संख्या क्या है?
भारत में लगभग 55 लाख (5.5 मिलियन) लोगों को एपिलेप्सी की बीमारी है। इनमें से 25 लाख (2.5 मिलियन) महिलाएं हैं और इन महिलाओं में से 13 लाख (1.3 मिलियन) महिलाएं प्रजनन आयु वर्ग में हैं (इन के बच्चे हो सकते हैं) ।
(डॉ। जयंती मणि ने कोकिलाबेन अस्पताल में एपिलेप्सी प्रोग्राम की स्थापना की है। उनकी विशेषता है सीज़र और एपिलेप्सी के रोगियों की दवा द्वारा चिकित्सा प्रबंधन और वे एपिलेप्सी सर्जरी से लाभान्वित होने वाले रोगियों का चयन भी करती हैं। वे कोकिलाबेन अस्पताल में 2009 से अब तक कार्यरत हैं, और हर साल करीब 4000 से अधिक एपिलेप्सी रोगियों के केस देखती हैं।)