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हम अकसर सुनते हैं कि बुजुर्ग लोगों को कब्ज, एसिड रिफ्लक्स (अम्ल प्रतिवाह), निगलने में कठिनाई, अल्सर इत्यादि जैसी पाचन संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है। डॉ। देवेंद्र देसाई, हिंदुजा अस्पताल, खार (मुंबई) में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के सलाहकार, हैं - इस लेख में वे उम्र बढ़ने का आंत के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, इस पर चर्चा कर रहे हैं।
प्रचलित परिभाषा के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की उम्र 65 वर्ष या अधिक हो तो हम उन्हें बुज़ुर्ग (सीनियर/ वरिष्ठ ) मानते हैं। विश्व की आबादी में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक 80 वर्ष या उससे अधिक की आयु के लोग कुल मिलाकर वैश्विक जनसंख्या का 17 प्रतिशत होंगे।
उम्र बढ़ने का हमारी आंत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
बुढापे का असर जठरांत्र पथ (गैस्ट्रोइन्टेस्टनल ट्रैक्ट) के अधिकाँश भाग पर होता है।
- मुंह गुहा या मुंह से शुरू करें - निगलने के लिए आवश्यक समन्वय (न्यूरोमस्कुलर कोआर्डिनेशन) बिगड़ सकता है।
- ईसोफैगस (ग्रासनली, घेघा) में क्रमाकुंचन (पेरिस्टलसिस) में कमी होना: ऊपरी ईसोफैगल संवरणी (अवरोधिनी, स्फिन्क्टेर) और निचली ईसोफैगल संवरणी क्षेत्रों में दबाव में कमी होती है।
- पेट में तरल पदार्थों को खाली करने की क्रिया में कमी होती है। छोटी आंत में प्रतिरक्षक क्षमता कम हो जाती है और दवा चयापचय (मेटाबोलिज्म) में परिवर्तन होता है।
- बृहदान्त्र (कोलन) या बड़ी आंत में भोजन के अपच भाग के गुजरने में विलम्ब होता है। मल के निकलने को नियंत्रित करने वाला स्फिंक्टर कमजोर हो जाता है।
- अग्नाशयी (पैन्क्रीऐटिक) स्राव कम हो जाते हैं।
- यकृत (लीवर) के कामकाज में परिवर्तन होता है जिस के कारण इस पर दवा के दुष्प्रभावों का जोखिम बढ़ जाता है।
- पित्ताशय (गॉल ब्लैडर ) का खाली होना कम हो जाता है
- बढ़ती उम्र वाली आंत में अनेक कारणों से चोट लगने का जोखिम बढ़ जाता हैं, जैसे कि दवा का दुष्प्रभाव और संक्रमण (इन्फेक्शन) के कारण हुई हानि।
जेरिएट्रिक (बुजुर्गों की) आबादी में सामान्य जीआई समस्याएँ कौन-कौन सी हैं?
- निगलने में कठिनाई - समन्वय की कमी या दंत मुद्दों के कारण
- शुष्क मुँह
- खाद्य सामग्री के कणों का श्वास-नली और फेफड़ों में प्रवेश (ऐस्पिरेशन)
- एसिडिटी (अम्लता) / एसिड रिफ्लक्स (अम्ल प्रतिवाह)
- गोलियों के सेवन से प्रेरित घेघा में सूजन (इन्फ्लामैशन) (गोली घेघा) का जोखिम बढ़ जाता है
- पेट या ग्रहणी (डुओडिनम) में अल्सर
- आंतों में रक्त की आपूर्ति में कमी (मेसेंटेरिक इस्किमिया)
- पेट, छोटी या बड़ी आंत में रक्तस्राव
- कब्ज और मल असंयम
- बड़ी आंत में डिवर्टिकुला (विपुटी)
- बड़ी आंत में सूजन (इन्फ्लामैशन)
उम्र के साथ आंत की मांसपेशियों और गतिशीलता में क्या बदलाव देखे जाते हैं?
7 वें दशक से पहले ये बदलाव स्पष्ट नहीं होते हैं। आहारनाल के पूरे मार्ग में - मुंह से लेकर, ग्रसनी, ईसोफैगस (घेघा) और बड़ी आंत तक लेकर मांसपेशियों में परिवर्तन होते हैं। इन के परिणामस्वरूप इन का कार्य करने का तरीका बदल जाता है। कुछ दिक्कतों के उदाहरण हैं निगलने में कठिनाई और मल असंयम। आहारनाल मार्ग की गतिशीलता में कमी होती है जिस से पेट फूलना और कब्ज़ हो सकता है।
हम अकसर सुनते हैं कि पेट में अच्छे बैक्टीरिया होते हैं। इस सिलसिले में “माइक्रोबायोम“ का नाम भी सुनते हैं - क्या आप “माइक्रोबायोम” शब्द की व्याख्या कर सकते हैं? उम्र बढ़ने के साथ इस में क्या बदलाव होते हैं?
“माइक्रोबायोम” एक निवास स्थल या पर्यावरण में साथ रहने वाले सूक्ष्मजीवों का समुदाय है। मनुष्य, पशु और पौधों, सब के अपने विशिष्ट माइक्रोबायोम होते हैं। उदाहरण के लिए, मानव आंत माइक्रोबायोम के सूक्ष्म जीव में बैक्टीरिया, वायरस और फन्जाइ (कवक, फफुंद) शामिल हैं। सामान्य स्थिति के दौरान इन में संतुलन बना रहता है। माइक्रोबायोटा की संरचना ऊतकों (टिशू) के भीतर और बीच में भिन्न होती है। नवजात शिशुओं के पेट में माइक्रोबियल रचना कैसी होगी यह बहुत हद तक आहार से तय होती है और इस बात पर निर्भर है कि शिशु को मातृ दूध दिया जा रहा है या फॉर्मूला से बना दूध।
मानव पाचन तंत्र में कई सूक्ष्मजीव बसे हैं। इन की कुल अनुमानित संख्या 1013 और 1014 के बीच है, और मानव शरीर की कोशिकाओं की कुल अनुमानित संख्या (3–4 × 1013) के करीब है। बैक्टीरिया की संख्या इस समुदाय के अन्य सूक्ष्म जीवाणु से कहीं अधिक है। आंत में पाए जाने वाले जीवाणु प्रजातियों की कुल संख्या लगभग 2,000 है।
मनुष्यों में और प्रयोगशाला में बने मॉडल में - इन में अध्ययन से पता चला है कि व्यक्ति की आंत माइक्रोबायोटा की संरचना उम्र बढ़ने के दौरान जबरदस्त ढंग से बदल जाती है और व्यक्ति के स्वास्थ्य और जीवन काल से जुड़ी होती है। हम माइक्रोबायोम पर उम्र बढ़ने के प्रभाव के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं - हो सकता है इन के बीच सम्बन्ध उलटा है - यानि कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया माइक्रोबायोम के बदलाव से प्रभावित होती हो। हम यह जानते हैं कि सामान्य तौर उम्र बढ़ने के साथ अंत में निवासी (कोमेंसल) बैक्टीरिया में विविधता में कमी होती है और इस से रोगजनक (रोग पैदा करने वाले) बैक्टीरिया आबाद हो पाते हैं।
बहुत अधिक खराब बैक्टीरिया होने से असंतुलन हो सकता है जो डिसबायोसीस का कारण बन सकता है। कृपया बताएं कि डिसबायोसीस कैसे होता है और यह उम्र बढ़ने की आंत से कैसे संबंधित है?
डिसबायोसीस एक व्यक्ति के प्राकृतिक माइक्रोफ्लोरा में मौजूद सूक्ष्म जीवों के प्रकारों के बीच असंतुलन है, विशेष रूप से आंत में। यह माना जाता है कि इस से अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना बढ़ सकती है।
आंत डिसबायोसीस व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को, और पुरानी निम्न-श्रेणी की सूजन को ट्रिगर कर सकता है। इस से उम्र से संबंधित कई प्रकार के डीजेनरेटिव (अपक्षयी) विकृति उत्पन्न हो सकती हैं और व्यक्ति का बुढ़ापा अस्वस्थ तरह से बीत सकता है।
क्या डिसबायोसीस अन्य रोगों के खतरे से जुदा है, जैसे कि कैंसर और इंफ्लेमेटरी बीमारियों?
डिसबायोसीस को हाल के वर्षों में कई बीमारियों से जोड़ा गया है। पेट दर्द रोग (इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज), मोटापा, यकृत (लीवर) रोग, पार्किंसंस रोग, डिमेंशिया - ये कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनमें डिसबायोसीस एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
आंत स्वास्थ्य ठीक न होने से व्यक्ति के मनोसामाजिक स्वास्थ्य पर क्या असर हो सकता है?
मस्तिष्क और अंत के बीच संचार होता है (गट-ब्रेन कम्युनिकेशन एक्सिस)। ऐसी कई बीमारियां हैं जिनमें अस्वस्थ आंत के कारण मनोसामाजिक स्वास्थ्य पर काफी असर होता है। ऐसी एक स्थिति का उदाहरण (जहां आंत के स्वास्थ्य और मनोसामाजिक भलाई के बीच एक संबंध है): संवेदनशील आंत की बीमारी (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम)।
उम्र बढ़ने की आंत के लिए प्रोबायोटिक की खुराक कितनी फायदेमंद हैं?
प्रोबायोटिक्स का उपयोग उम्र से संबंधित अंत माइक्रोबायोटा असंतुलन को नियंत्रित करने के लिए हो सकता है। प्रोबायोटिक्स के उपयोग से आंत में ऐसे किस्म के सूक्ष्म जीव प्रविष्ट हो सकते हैं जिन का स्वास्थ्य में विशिष्ट लाभ हो सकता। बुजुर्गों में प्रोबायोटिक्स के इस्तेमाल के फायदों में ख़ास तौर से इन्हें माना जाता है: डायरिया रोगों की रोकथाम, रोगजनकों के खिलाफ सुरक्षा, आंतों के अवरोध समारोह में वृद्धि, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल गतिशीलता और सूजन आंत्र विकारों में सुधार, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव, और पेट के कैंसर से बचाव। पर ध्यान रहे, इन दावों के समर्थन में अभी अधिक सबूतों की आवश्यकता है। वर्तमान में प्रोबायोटिक्स को बढ़ती उम्र में आंत के स्वास्थ्य के लिए लेने सलाह नहीं दी जाती है।
एक स्वस्थ पाचन तंत्र बनाए रखने के लिए बुजुर्गों और युवाओं को आपकी सलाह क्या है?
कुछ सरल और व्यावहारिक सुझाव हैं:
- चीनी और स्वीटनर कम खाएं
- आहार में वसा ज्यादा न लें और लाल मांस कम करें
- तनाव का स्तर कम करें
- नियमित रूप से व्यायाम करें
- पर्याप्त नींद लें, और
- धूम्रपान से बचें
डॉ। देवेन्द्र देसाई बर्मिंघम यूनिवर्सिटी लीवर यूनिट में विजिटिंग डॉक्टर हैं और अमेरिका के मेयो क्लिनिक, मिनेसोटा में इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज में ऑब्जर्वर भी हैं। उन्होंने पी डी हिंदुजा अस्पताल (मुंबई) में "इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज क्लिनिक" शुरू किया था और "कोलाइटिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया" नामक रोगी सहायता समूह की स्थापना की।
उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अनुक्रमित पत्रिकाओं में 75 से अधिक पत्र प्रकाशित किए हैं और विभिन्न चरणों में 12 पुरस्कार जीते हैं।