Skip to main content
Submitted by PatientsEngage on 6 June 2020

कैंसर रोगी और उनकी देखभाल करने वालों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा को कम करने में साइको-ऑन्कोलॉजी ने बहुत मदद की है। इस लेख में टाटा मेमोरियल अस्पताल में साइकोऑन्कोलॉजिस्ट सविता गोस्वामी ने कैंसरग्रस्त बच्चों की देखभाल में इस्तेमाल होने वाली कई तकनीकों के बारे में बात कर रही हैं।

हाल ही के वर्षों में कैंसर संबंधी बाल चिकित्सा में मनोसामाजिक प्रयासों को जोड़ने पर ध्यान दिया जा रहा है।इन प्रयासों में क्या-क्या शामिल है?

पिछले  दो दशकों से कैंसर से पीड़ित बच्चों, उनके परिवार वालों और देखभाल कर्ताओं की स्थिति सुधारने के लिए ऐसे कई प्रयास करे गए हैं जो साक्ष्य आधारित  हैं और जिन के परिणाम अच्छे हैं।बच्चों की कैंसर चिकित्सा में मनोसामाजिक हस्तक्षेप एकगतिविधियों  और रणनीति पर आधारित तकनीक है जो शारीरिक और मानसिक तनाव और व्यवहार, तालमेल और संज्ञानात्मक क्षमता से जुड़ी समस्याओं को संबोधित करने में मदद करता है। यह सामाजिक, पारिवारिक और माहौल से जुड़ी तकलीफों से निपटने में भी मदद करता है। हम साक्ष्यों पर आधारित चिकित्सकीय तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी, फेमिली थेरेपी, प्रॉब्लम सॉल्विंगऔर बच्चों और उनके परिवारों के लिए साइको-एजुकेशन। खेल,कला,संगीत, भावनात्मक लेखन और हॉबी (रुचियाँ) जैसी कई गतिविधियां इस तकनीक में शामिल हैं।

कैंसर के उपचार (कीमो, सर्जरी, रेडिएशन) से पैदा होने वाले दुष्प्रभाव के कारण संज्ञानात्मक कठिनाई, बीमारी से जूझनेमें परेशानी और विचलित व्यवहार जैसी दिक्कतें सामने आ सकती हैं। कैंसरग्रस्त बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए किस तरह की अन्य प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं?

बच्चों के कैंसर के इलाज में दर्द और मानसिक पीड़ा के कई स्रोत हो सकतेहैं जैसे बीमारियों से जुड़े लक्षणों के कारणपीड़ा होती है और कुछ दर्दनाक अनुभव।एक अन्य पीड़ा का संभव कारण है दर्दनाक और शारीरिक तौर पर उत्पीडित करने वाले इलाज जैसे कि बोन-मैरो से टिशु निकालना, लंबार पंक्चर, आईवी,और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव जिसमें उल्टी आना, थकान होना,म्यूकोसाइटिस जैसी समस्याएं शामिल हैं। ऐसे समय में बच्चे के दर्द और मानसिक पीड़ा को कम करने मेंसाइको ऑन्कोलॉजिस्ट एक अहम भूमिका निभाते हैं। साक्ष्य आधारित व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक तकनीक और काग्निटिव बिहेवियर तकनीक बच्चों और उनके परिवार वालोंकी तकलीफ कम करते हैं और उन्हें कठिन समय के लिए तैयार करने में मदद करतेहैं। तकलीफ से ध्यान हटाने की तकनीक भी छोटे बच्चों के लिए काफी मददगार रहती है। थोड़े बड़े बच्चों के लिए साइको-एजुकेशन, रिलैक्सेशन,सम्मोहन तकनीक,दृश्यावलोकन और कल्पना आधारित तकनीकें ज्यादा कारगर होती हैं।

क्या मनोवैज्ञानिक का हस्तक्षेप कैंसर से पीड़ित शिशुओं और बच्चों को सुरक्षित और आराम महसूस करवा सकता है?

जिन बच्चों की उम्र 7 साल से कम होती है उनमें भावनात्मक और व्यवहारात्मक समस्याओं का खतरा ज्यादा रहता है। बच्चों का नखरे दिखाना,आक्रामक होना, ठीक से दवा ना खाना और इलाज न होने देना, कहनाना मानना,खाना न खाना -- ये ऐसे व्यवहार हैं जोमाता-पिता के धैर्य की परीक्षा लेते हैं।यह समस्या माता-पिता  की भावनात्मक पीड़ा का कारण बन सकती है। माता-पिता बच्चों की तकलीफ के लिए खुद को दोषी मानते हैं। ऐसे में माता-पिता की काउंसेलिंग करके उनको सहारादेना बहुत जरूरी है। मुझे याद है कि मेरे पास एक बार ढाई साल का बच्चा आया था जिसे पेल्विकट्यूमर था। वह दर्द की वजह से फिजियोथैरेपी नहीं करवा पा रहा था। जब वह बच्चा हमारे पास आया तो पहले हम उससे और उसके माता-पिता के साथ तालमेल बनाने लगे और फिर हमने माता-पिता को बच्चे के लिए ऐसे म्यूजिकल जूते लाने का सुझाव दिया जिससे संगीत की आवाजें निकलती हों। दिलचस्प बात यह है कि म्यूजिकल जूते पहनकर बच्चा खड़ा होने के लिए, चलने के लिए और फिजियोथेरेपी करवाने के लिए तैयार हो गया। मनोवैज्ञानिकों को आसान, उपयोगी और रचनात्मक तरीके सुझाने पड़ते हैं।

शिशुओं की तुलना में क्या कैंसरग्रस्त किशोरों को काउंसेल करना अधिक मुश्किल होता है क्योंकि वह पहले से ही संज्ञानात्मक,शारीरिक और सामाजिक बदलावों की समस्या से जूझ रहे होते हैं?

बड़े बच्चे ज़्यादातर भावुक प्रतिक्रियाएं दिखाते हैं। मूड बदलना, उदास हो जाना, गुस्सा आना, कम ध्यान देना, एकाग्रताकी क्षमता कम होना, याद रखने में दिक्कतें जैसी समस्याएं सामने आती हैं। वे अपनी खुद की छवि, खुद की पहचान और यौन पहचान के बारे में परेशान रहते हैं। वे अपनी उम्र के बच्चों की प्रतिक्रियाओं को लेकर परेशान रहते हैं। कैंसर से जीतने और कैंसर सर्वाइवर होने के बावजूद उन्हेंसमाज में, शिक्षा के क्षेत्र में, रोजगार, रिश्तों और शादी के संदर्भ  में भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इस सब से उनकी अपने बारे में राय पर और आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता  है और ये सभी उनके जीवन को पेचीदा बना देते हैं।

  1. इस उम्र के बच्चों के लिए मनोसामाजिक हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। कॉगनिटिव बिहेवियरथेरेपी से उन्हें स्थिति के अनुसार उचित व्यवहारिक और सोचने-समझने का रवैया अपनाने में मदद मिलती है और वे अपनी समस्याओं और चिंताओंसे जूझ पाते हैं
  2. सामूहिक गतिविधियों से उनका अकेलापन दूर होता है। वे नए दोस्त भी बना पाते हैं और अपने परिवार वालों के साथ और समाज के साथ भी जुड़े रहते हैं।इसलिए उन्हें समूह के अन्य सदस्यों के साथ और समाज के लोगों के साथ जोड़ना अच्छा रहता है।कला, लेखन और अन्य मनोरंजक गतिविधियों से युवाओं और किशोरों को काफी मदद मिलती है इसलिए उन्हें समूह में ऐसी गतिविधियों में भाग लेने केलिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
  3. उन्हें सक्षम बनाने के लिए, उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए और उन्हें सुदृढ़ बनाने के लिए जरूरत के अनुरूप चुनी गयी मनोसामाजिक प्रयासों की बहुत जरूरत है। मनोवैज्ञानिक उन्हें उनकी सीमा और क्षमता को खोजने में मदद करते हैं।

किशोरों और युवाओं में कैंसर पीड़ितों  की संख्या बढ़ती जा रही है। टाटा मेमोरियल अस्पताल में जितने भी पंजीकृत कैंसर रोगी हैंवे थेरेपी पूरा करने के बादके क्लिनिक (एसीटी) में अपनी वार्षिक जाँच के लिए अवश्य आते हैं। चिकित्सकीय एवं शारीरिक जांच के साथ-साथ उनका साइको-सोशलऔर न्यूरो-कॉग्निटिव मूल्यांकन भी किया जाता है। कैंसर से पीड़ित बच्चों का एक सपोर्ट ग्रुप भी है जो सक्रिय रूप से बच्चों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहा है।

पैलिएटिव केयर के दौरान बीमारी से जुड़े डिप्रेशन को समझने का सबसे बेहतर तरीका क्या है?

बच्चों के लिए डिप्रेशन समझने और मापने के लिए बहुत से ऐसे टूल्स हैं जिन्हें उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजिकल स्टडीज डिप्रेशन स्केल (सीईएस– डीसी),चाइल्ड डिप्रशेन इन्वेंट्री (सीडीआई), चाइल्ड डिप्रशेन स्केल (सीडीएस), बर्लेसन्स डिप्रेशन सेल्फ रेटिंग स्केल फॉर चिल्ड्रन -मगरयेसभी पश्चिमी देशों से आए हैं। हम जिस तरह बच्चों की देखभाल व परवरिश करते हैं वे पश्चिमी समाज से काफी अलग माहौल से आते हैं। वे अलग भाषाएं बोलते हैं, उनके अलग-अलग तरह के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश हैं। अनेक पहलुओं में ये बच्चे एक दूसरे से भी भिन्न हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों की समस्याओं और मानसिक पीड़ा की जांच और पहचान कर उम्र के आधार पर उनकी मनोसामाजिक स्थिति और परिस्थितियों पर विचार करना मददगार होगा।

घर में मौजूद तनाव के कारकों से जूझने में आप रोगियों की मदद कैसे करते हैं? घर पर रहकर स्वास्थ्य में सुधार में मदद करने के उद्देश्य से आप उन्हें क्या सलाह देते हैं?

जब बच्चे घर जाते हैं तो उन्हें अपने हमउम्र साथियों, परिवार के सदस्यों और समाज का सामना करना पड़ता है जहां उन्हें उनकी बीमारी, उसके इलाज, और उनके बदले शारीरिक रूप  को लेकर कई सवाल पूछे जाते हैं। हम बच्चों को इस बात के लिए तैयार कर सकते हैं कि वे ऐसी स्थितियों से कैसे निपटें, ताकि वे बीमारी या शारीरिक बदलावों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दे सकें। बदलाव को धीरे-धीरे स्वीकार करने योग्य बनाने के लिए मनोशिक्षा भी जरूरी है। उन्हें आश्वस्त किया जाता है कि यदि वे कुछ कार्य नहीं भी कर पाते हैं या किसी परिस्थिति का सामना नहीं कर पाते हैं तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। बच्चों और माता-पिता को तनाव मुक्त रहने और सार्थक गतिविधियों में लगे रहने की सलाह देना भी बहुत ही जरूरी है। दवाइयों को जारी रखने के लिए उन्हें प्रेरित करना,नियमित रूप सेडॉक्टर से जाँच करवाते रहना, खान पान का ध्यान रखना और व्यायाम की विधि का पालन करने के बारे में उन्हें बार-बार समझाया जाता है।योजनाबद्ध तरीके से एक दिनचर्या बनाने सेबच्चों को घर के वातावरण में ढलने और सामान्य जिंदगी में लौटने में मदद मिलती है।

कैंसर ग्रस्त बच्चे की देखभाल करने का माता-पिता और भाई-बहनों पर भी कई तरह से असर होता है। उनकी पीड़ा और कठिनाई को आसान बनानेके लिए उन्हें क्या सलाह दी जाती है?

जब माता-पिताको बच्चे के कैंसर के बारे में पता चलता है तो वे अत्यधिक तनाव में आ जाते हैं। अनिश्चितता और बच्चे के सेहत की चिंता उन्हें भावनात्मक रूप से कमजोर, अवसादग्रस्त और उत्कंठित बना देती है। इसलिए जरूरी है कि ऐसे माता-पिताको सहारा दिया जाए, उनकी चिंताओं के बारे में बात करीजाए,उनके दृष्टिकोण को समझा जाए,और उनकी ताकतऔर इस परिस्थिति का सामना करने की क्षमता को लेकर उनके साथ चर्चा करीजाए। सहायक मनोचिकित्सा उस परिवार को अपनी रोजमर्रा कीजिंदगीको नियमितता से चलाने में और एक दूसरे के साथ बातचीतकरने में काफी मदद कर सकती है। बच्चे का सफलतापूर्वक इलाजपूरा करना और उसके जीवन की गुणवत्ता पूरी तरह से उसके माता-पितासे मिल रहीदेखभाल पर निर्भर करती है। इसलिए माता-पिता के तनाव और उनकी चिंताओंको सही ढंग से संबोधित करना जरूरी है। मनोवैज्ञानिक माता-पिता के तनाव को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। भाई-बहनों को भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उनके जीवन में भी उथलपुथल बनी रहती है इसीलिए उन्हें भी बराबर प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। हम माता-पिता को यह समझाते हैं और सलाह देते हैं कि उन्हें अपने अन्य बच्चों पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए जितना अपने कैंसर पीड़ित बच्चे पर दे रहे हैं। कैंसर सर्वाइवर्स को भी यह समझाया जाता है कि वे भी अपने उन भाई-बहनोंका ख़याल रखें जो कैंसर से पीड़ित नहीं हैं।

टाटा मेमोरियल अस्पताल में पिछले कुछ सालों में ऐसे रोगियों की संख्या में बहुत कमी आई है जो अपना इलाज नहीं करवाना चाहते या अपना इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। इसका कारण क्या है?

टाटा मेमोरियल अस्पताल में उपचार बीच में ही छोड़ देने वालोंकी दर कम होने के कई सारे कारण हो सकते हैं। आजकल कैंसर रोगी और उनके परिवार वालों को पूरा साथ और समर्थन ज्यादा मिल रहा है जैसे प्रशासनिक नीतियां बदलना,कार्यप्रणाली बदलना, चिकित्सा के लिए माता-पिता को आर्थिक मदद उपलब्ध करवाना,और अन्य संसाधन उपलब्ध होना,जैसे कि पौष्टिक भोजन, रहने की जगह, मेडिकल किटआदि। इसके अलावा कैंसर पीड़ित रोगी के परिवार वालोंऔर देखभाल करने वालों को मनोवैज्ञानिक सहायता भी दीजाती है। निदान और चिकित्सा प्रणाली तय करने के समय माता-पिता का समर्थन करना भी बहुत जरूरी है। उसी दौरान सपोर्ट ग्रुप के माध्यम से जानकारी पाने में उनकी मदद करने से और भावनात्मक रूप से और हर तरह से माता-पिता का साथ देते रहने सेभी बहुत अच्छाप्रभाव पड़ा है। रोगियों में भी आत्मविश्वास जागता है और उन्हें लगता है कि स्थिति नियंत्रण में हैं।इन्हीं कारणों से यह बदलाव आया है और उपचार परित्याग का दर कम हुआ है।

मृत्यु और शोक की स्थिति को लेकर परिवार की चिंताओं को किस तरह संभाला जाता है?

बीमारी का लगातार बढ़ना और बच्चे की मौत हो जाना उसके परिवार वालों के लिए बहुत ही दुखदायी और कठिन परिस्थिति होती है। यह परिवार के लिए बहुत शोकऔर तनाव की स्थिति होती है। अगर माता पिता और बच्चे की देखभाल कर रहे व्यक्ति को बच्चे की मौत से पहले ही इस बुरे समय के लिए तैयार किया जाए तो यह शोक के असर को कम करने में मददगार होता है। जब हम शोककी बात करते हैं तो यह केवल रोग का पता लगने और बच्चे की मृत्यु पर ही नहीं होता बल्कि उपचार के दौरान क्षमता घटने और अंगों केनिष्क्रिय होने से भी होता है, मसलन किसी कारण किसी अंग को काटने या निकालने की कारवाई। इस परिस्थिति में माता-पिता को पूरी जानकारी देना, उनके डर को समझना और उसका हल निकालना बहुत जरूरी है। इस परिस्थिति में लक्षणों की पहचान भी जरूरी है क्योंकि भावनात्मक स्तर पर अत्यधिक आघात या उथलपुथल की स्थिति में साइको-फार्मेको-थेरेपी से व्यक्ति को स्थिर या स्वाभाविक स्थिति में वापस लायाजाता है।

हाल के वर्षों में साइको-ऑन्कोलॉजी से जुड़ी क्या कोई ख़ास बातें सामने आई हैं?

साइको-ऑन्कोलॉजी में हम पहले भी लक्षणों के आकलन के आधार पर हस्तक्षेप निर्धारित करते थे और मनो वैज्ञानिक परेशानियों को समझने और कम करने के लिए योजना बनाई जाती थी। पिछले दो दशकों में साइको ऑन्कोलॉजी में नए तरीके विकसित किए गये हैं। अब हम बच्चों का इलाज उनके परिवार और अन्य प्रणालियों के  सन्दर्भ में करते हैं। विकासात्मक दृष्टिकोण का अधिक उपयोग किया जाता है और बाल रोगियों और उनके परिवारों की देखभाल करते समय उनकी क्षमताओं और कमजोरी की पहचान की जाती है।अब मनोवैज्ञानिक ज्ञान को इलाज, निर्णय प्रक्रिया और चिकित्सकीय देखभाल के साथ जोड़ने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए कैंसर की देखभाल अब और भी व्यापक  हो गई है।अन्य  क्षेत्र जिनमें पीड़ा निवारण और शोक की स्थिति से उबारने को लेकर भी अधिक रिसर्च की गई हैसाथ ही साक्ष्य आधारित और संरचित योजना बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि कैंसरग्रस्त बच्चों और उनकी देखभाल करने वाले परिवार को बेहतर स्तर पर मदद मिल सके। 

Community
Changed
Sat, 06/06/2020 - 14:59

Stories

  • Photography Lessons for Kids to Fight Cancer
    Rajen Nair, a freelance photojournalist and writer, teaches skills of photography to children with cancer to bring hope, optimism and laughter in their lives. How long have you been a photographer? I became a photographer by default in the year 2004, after I lost my hearing in the right ear and later developed tinnitus due to botched ear surgery. I had no option but to wind up my business. To earn a living, I studied journalism, as writing was my passion, and learnt photography later to…
  • Love in the Times of Cancer
    Mukesh’s love for his college sweetheart, Shachi, remained resolute even after she was diagnosed with breast cancer. Here is a Valentine’s Day story to warm your heart. It was in 2001 that I first saw her. She walked into my tutorial class and it was love at first sight for me. I know most people say love at first sight is just an infatuation, but I felt an instant romantic attraction for her. It could be an infatuation, or young adult crush…I don’t know. All I knew was that my head was…
  • A cancer patient, shown as bald due to chemotherapy eating food
    How to Take Care of Yourself during Radiation Therapy
    Nearly two thirds of patients with cancer will undergo radiation therapy as part of their treatment plan. There are a variety of common side effects associated with radiation therapy. Read about prevention and management of radiation side effects excerpted from a booklet of Cancer Patients Aid Association (CPAA). Radiation Treatment Radiation therapy is an extremely important treatment option in the management of cancer. In the last two decades spectacular progress in technology has led to…
  • 3 Books on Cancer that Inspire and Change Perspective
    Geetha Paniker, a survivor of triple negative cancer with double mastectomy, shortlists 3 books on cancer that had a great impact on her. When you're dealing with cancer, a daily dose of inspiration may make a big difference in the outlook on life. Keeping a positive outlook is proven to help with stress management, but when someone says to "think positive" or "be optimistic" during a traumatic phase of any disease, it can be much easier said than done. Knowing cancer isn't all rainbows and…
  • ‘I Thought I was Invincible!’
    We bring you the heroic journey of Dilip Kumar Mevada, diagnosed with complete paralysis due to Multiple Myeloma, a rare cancer, who conquered the illness with an amazing team of doctors, supportive family and resolute power of the mind. Read his inspiring story in his own words. At 48, I had the world at my feet. A beautiful family, a very successful architecture and interior design practice, and a future that promised bigger, better and more in all aspects. I thought I was invincible! हिंदी…
  • We need a Holistic Approach to Treating Cancer
    Susmita Mitra, Director - Special Projects at Cancer Patients Aid Association (CPAA), underlines the concerns and worries of cancer patients and emphasizes the importance of Psycho Oncology, a comparatively recent addition in cancer care, to build a positive frame of mind, ease trauma and facilitate recovery. It is well recognized that compared to any other disease, a diagnosis of cancer results in immense trauma to the patient on one hand, and his family members on the other, as they grapple…
  • Never Too Old to Sing
    The Choir of the Loaves and Fish, a musical ensemble of senior citizens, started by Pervin Varma with Regina Thomas in Bengaluru has been immensely therapeutic for the elderly and has helped bring loads of warmth and sunshine into their lives. Picture above: Ammachy taking a bow with Pervin Varma Imagine a group of people – all senior citizens between 65 and 96 – people who have suffered strokes or are living with cancer, arthritis, heart disease, dementia, physical disabilities, people with…
  • Hypnosis for Pain Relief and Anxiety Management
    Worldwide, medical hypnosis is being increasingly accepted to ease acute and chronic pain arising from burns, cancer, and rheumatoid arthritis and reduction of anxiety associated with surgery. What is hypnosis? Hypnosis is a state of increased suggestibility with constriction of peripheral awareness and increased focal concentration on task at hand. Heightened suggestibility is an essential characteristic in hypnosis. Hypnosis is like a meditative technique that encourages inner search and the…
  • The Power of Our Minds to Control Pain, My Son’s Experience
    Research has shown that hypnosis and hypnotherapy can help alleviate symptoms of many medical conditions. Read Lesli Berggren’s first-hand account of how she stood in awe as she watched her son hypnotize his agonizing pain away, without medicines. My son Nils Berggren, age fourteen, had beaten stage 4 lymphoma. However, his life threatening problems continued because of the required stem cell transplant he had received at the National University Hospital in Singapore, where we lived. We moved…
  • What do the numbers on your blood report mean?
    You have the Complete Blood Test in front of you and don’t now what the results mean. Dr. Shital Raval explains it in simple terms in our Health by Numbers/Medical Tests series. A CBC or complete blood test is a basic blood test which is often carried out along with a physical examination to verify and analyse various cellular components in the blood. This allows the doctor to check and confirm any suspicions and find any potential health problems. CBC test result alone may not be sufficient to…