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इस लेख में एक ऐसे युवक की कहानी है जिन्हें शादी के छह महीने के भीतर पता चला कि उन्हें नॉन हॉजकिन लिंफोमा (कैंसर) है। वे उस बहुत कठिन दौर से गुजरने और अपने कैंसर के इलाज के एक साल बाद बच्चा होने के अपने अनुभव साझा करते हैं।
2016 की बात है - मैं 26 साल का था। मेरी शादी को अभी साढ़े पांच महीने ही हुए थे। मैं अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी के साथ अत्यधिक प्रसन्नता की अवस्था में था। शेविंग करते समय एक दिन मैंने महसूस किया कि मेरी गर्दन के एक तरफ पर कुछ सूजन है। ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मैंने देखा कि यह दिन-ब-दिन बड़ी होती जा रही है। अब मैं थोड़ा चिंतित हुआ। मेरी माँ ने भी इस को नोट किया और सुझाव दिया कि मैं दूर के शहर में एक आयुर्वेदिक डॉक्टर को दिखाऊँ। मैंने अभी भी इसे गंभीरता से नहीं लिया और आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास सिर्फ इसलिए गया क्योंकि मेरी माँ ने मुझे ऐसा करने के लिए कहा था। मैंने इसे एक सैर का मौका समझा। मैं कुछ महीनों तक व्यर्थ ही 'काढ़ा' लेता रहा। सूजन अब गांठ की तरह लग रही थी। अब मैं जिस किसी से भी मिलता, उसे यह गाँठ दिखाई दे रही थी।
आखिरकर मुझे यह समझ में आया (शेविंग में सूजन देखने वाले दिन के करीब 3-4 महीने बाद) कि मुझे बिना किसी देरी के इसकी जांच करानी चाहिए। और मैंने ऐसा ही किया ....यह स्टेज 3 नॉन हॉजकिन लिंफोमा था। पीईटी स्कैन ने दो जगहों पर मैलिग़नैंसी दिखाई। एक नोड गर्दन इ क्षेत्र में था और दूसरा डायाफ्राम (मध्यच्छद पेशी) के नीचे था। तो, यह “डिस्टेंट लिंफोमा” था।
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खबर सुनकर मेरे पूरे परिवार को बहुत झटका लगा। शुरू में स्थिति स्वीकार नहीं हो रही थी ...लग रहा था कि हमारे घर में ऐसा केस हो ही नहीं सकता। हमने दोबारा जांच करवाई और निदान पर विश्वास करना पड़ा। हमने मायके के एक रिश्तेदार से संपर्क किया, जो अभी-अभी स्तन कैंसर से उबरी थी। उसने एक बड़े शहर में एक ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ) के साथ मीटिंग की व्यवस्था की।
डॉक्टर ने रिपोर्ट देखने के बाद हमें आश्वासन दिया कि यह पूरी तरह से इलाज से ठीक हो सकता है। उन्होंने कहा कि मुझे आठ राउंड कीमोथैरेपी की जरूरत पड़ेगी। आगे के इलाज के बारे में आठ राउंड खत्म होने के बाद ही फैसला किया जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं अपने शहर में ही कीमोथेरेपी लूं। उन्होंने मुझे मेरे शहर में एक ऑन्कोलॉजिस्ट के पास भेजा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अगर हम निकट भविष्य में बच्चे की योजना बना रहे हैं तो मुझे अपने शुक्राणु को शुक्राणु बैंक (स्पर्म बैंक) में संरक्षित करना चाहिए। केमोथेरेपी के बाद मेरे शरीर को स्वस्थ शुक्राणु फिर से बना पाने में पांच साल लगेंगे। हमने उनकी बात मानने का फैसला किया और शुक्राणुओं को स्पर्म बैंक में संरक्षित करा।
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कीमोथेरेपी के असर
कीमोथेरेपी आसान नहीं थी। यह हर समय मतली, चक्कर आना और भूख की कमी थी। हर दिन मैं दिन गिनता रहा। जीवन जो कुछ दिन पहले इतना सुंदर था, अचानक इतना कठिन हो गया था। मुझे इस तरह देखकर मेरे माता-पिता का बुरा हाल था। जब वे आस-पास होते तो मुझे चेहरा हंसमुख बनाए रखना पड़ता था। मेरा बड़ा सहारा मेरी पत्नी थी। मेरे उदास मूड और हताशा के दिनों में उसने बड़ी समझदारी से मुझे सहारा दिया। मुझे लगता था कि मैं बच नहीं पाऊंगा। कुछ दिन सच में गहरे अंधकार में डूबे थे। कीमोथेरेपी के चार दौर के बाद, पीईटी स्कैन दोहराया गया। डायाफ्राम के नीचे का नोड पूरी तरह से चला गया था। इस से बहुत ही बड़ी राहत मिली। हम आश्वस्त हुए कि हम सही दिशा में हैं। यह जानने पर कि कीमोथेरेपी मेरे लिए अच्छा साबित हो रहा है, उस के दुष्प्रभाव सहना कुछ आसान हुआ। कीमो के आखिरी दो दौर के दौरान मेरे मुंह में छाले पड़ गए, खाना और भी मुश्किल हो गया जिससे मेरे वजन घटने की समस्या को रोकना वाकई मुश्किल हो गया। लिक्विड फूड या सेमी सॉलिड फूड ले कर मैं किसी तरह उस दौर को पार करने में कामयाब रहा।
(बॉक्स के नीचे जारी है)
उनकी 24 वर्षीय पत्नी ने बताया:
मुंह में छाले होने पर मैं उन्हें दूध में कुचला हुआ शकरकंद देती थी। इस से पेट अच्छी तरह भर पाता था और उन्हें यह पसंद भी था।
भावनात्मक समर्थन के लिए:
मैं उनकी बातें सुनती रहती - उनकी बातें उनके माता-पिता और मेरे इर्द-गिर्द घूमती थीं। जब उन्हें संदेह होता कि वे इस से जीवित नहीं बच पायेंगे, तो मैं क्या कर सकती थी, बस केवल उन्हें आश्वस्त करती रहती। कभी-कभी सिर्फ सिर थपथपाने से ही उन्हें नींद आ जाती थी।
मैं काम करना जारी रख पाया क्योंकि मैं एक आईटी पेशेवर हूं और वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) कर सकता हूँ।
ैं काम करना जारी रख पाया क्योंकि मैं एक आईटी पेशेवर हूं और वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) कर सकता हूँ।
फिर से एक पीईटी स्कैन ... यह रिपोर्ट यह तय करने के लिए थी कि मुझे विकिरण चिकित्सा (रेडिएशन थेरेपी) की आवश्यकता होगी या नहीं। डॉक्टर ने रिपोर्ट की CD( सीडी) देखने के लिए दो दिन का समय लिया क्योंकि वे मेरी उम्र को नज़र में रखते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे। दो दिन बाद उन्होंने कहा कि मुझे रेडिएशन थेरेपी की जरूरत नहीं है। मेरा कैंसर का इलाज पूरा हो चुका था। मुझे बस समय-समय पर टेस्ट कराते रहना था।
एक साल बाद हमने संरक्षित शुक्राणु के सहारे बच्चा पैदा करने का फैसला किया। प्रक्रिया सफल रही। हम एक स्वस्थ लड़के के माता-पिता बने। ज़िंदगी फिर से खुशहाल हो गयी।
अधिकांश कैंसर से उबरने वाले उत्तरजीवियों की तरह, मुझे भी समाज के प्रति योगदान करने की इच्छा हुई। मैं हर रविवार को 'खिचड़ी' पकाता हूं और आस-पास के झुग्गी-झोपड़ियों के गरीब बच्चों को खिलाता हूं। खिचड़ी ही क्यों? क्योंकि मैं यह खुद पका सकता हूं।
लिम्फोमा के रोगियों के लिए मेरा संदेश है कि अपने डॉक्टर की सलाह पर विश्वास रखें। और हां, हल्के-फुल्के अंदाज में यह जोडूँगा कि वीडियो गेम खेलने से दर्द से ध्यान हटाने में मदद मिलती है।
नोट: रोगी अपना नाम साझा नहीं करना चाहते हैं, लेकिन वे आशा करते हैं कि उनका अनुभव अन्य रोगियों के लिए सहायक होगा