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42 साल की नीतू स्क्लेरोडर्मा होने से पहले एक सॉफ्टवेयर कंसलटेंट थीं, पर स्क्लेरोडर्मा ने उनके जीवन को और उनकी पहचान को बदल दिया। इस लेख में वे स्क्लेरोडर्मा होने के अनुभव और उस की चुनौतियों के बारे में बात करती हैं और साझा करती हैं कि कौन से जीवन शैली के बदलाव उनके लिए कारगर रहे हैं। वे अब स्क्लेरोडर्मा इंडिया की सह-संस्थापक हैं।
यह 2019 में किए गए एक इंटरव्यू का अनुवाद है |
कृपया हमें अपनी स्थिति के बारे में कुछ बताएं, आपको निदान कब मिला और आपके शुरुआती लक्षण क्या थे?
जनवरी 2006 में मैंने अत्यधिक ठंड में अपनी उंगलियों को नीला पड़ते देखा, लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। उसी वर्ष, मुझे सांस लेने में समस्या होने लगी, लेकिन मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा क्योंकि मेरे परिवार में अस्थमा का इतिहास है। मेरे डॉक्टर ने मेरे लिए एक इनहेलर निर्धारित किया और मैं वापस अपने सामान्य जीवन पर लौट गई। साथ ही, मेरी अंगुलियों में सूजन आ गई थी, खासकर मेरे अंगूठे में, जिस पर मैंने उस समय ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
Read in English: How Scleroderma changed my identity
नवंबर 2006 में नौकरी की वजह से मैं दूसरे शहर में रहने लगी, और मुझे रोजाना सूखी खांसी होने लगी। मैंने तुरंत उसके लिए होम्योपैथिक दवाएं शुरू की लेकिन राहत कुछ समय के लिए ही मिल पाई। मुझे पेट दर्द और अपच की समस्या भी होने लगी थी। कई डॉक्टर के पास गई लेकिन अल्ट्रासाउंड के बाद भी मुझे बस यही बताया गया कि यह सामान्य गैस्ट्रिक समस्या है और चिंता की कोई बात नहीं है।
इसके बाद मैंने वॉकहार्ट अस्पताल बैंगलोर में वरिष्ठ डॉक्टरों को दिखाया और परीक्षणों की एक लंबी श्रृंखला के बाद मुझे ब्रोंकाइटिस का निदान दिया गया और इसके लिए दवाएं दी गईं। इसके अलावा, एसिड रिफ्लक्स का भी निदान किया गया, जो मेरे लिए एक नया नाम था। मुझे तुरंत एसिडिटी की गोलियां दी गईं और जीवनशैली में कुछ बदलाव करने की सलाह दी गई।
सांस की तकलीफ अभी भी बहुत परेशान कर रही थी, इसलिए मैं वापस दिल्ली शिफ्ट हो गई और अपने फैमिली डॉक्टर की देखरेख में और इनहेलर के इस्तेमाल से मेरी हालत स्थिर हो गई। एक और समस्या जो मुझे परेशान कर रही थी वह थी लगातार वजन बढ़ना। अच्छी तरह से एक्सरसाइज के बाद भी मैं अपना वजन कम नहीं कर पा रही थी। कई परीक्षणों के बाद, मुझे हाइपोथायरायडिज्म का निदान दिया गया। यह 2008 में था।
2009 से, मेरे परिवार के डॉक्टर ने मेरी उंगली पर कैल्शियम के डिपाजिट देखे, और मुझसे रायनौड रोग से सम्बंधित कुछ सवाल पूछे। मैं अभी भी नीली उंगलियों और जोड़ों और पैर की उंगलियों में सूजन का अनुभव कर रही थी। फिर से कुछ परीक्षण किए गए और परिणामों से पता चला कि मुझे स्क्लेरोडर्मा है।
कृपया स्क्लेरोडर्मा के प्रबंधन के अपने अनुभव का वर्णन करें
मार्च 2009 में, निदान होने के बाद, मुझे एक विशेषज्ञ के पास भेजा गया, जिसने अन्य परीक्षणों की एक श्रृंखला के बाद मुझे स्थिति का प्रबंधन करने के लिए अन्य दवाओं के साथ स्टेरॉयड भी दिए।
इस बीच में मेरे पैर के अंगूठे का एक हिस्सा काट दिया गया था क्योंकि इस में गैंगरीन होने लगा था। लगभग 2 वर्षों के बाद हमने महसूस किया कि रोग की प्रगति बहुत अधिक है और दवाएं मुझे बहुत आवश्यक राहत नहीं दे पा रही हैं इसलिए मुझे डेक्सामेथासोन थेरेपी के साथ साइक्लोफॉस्फेमाइड (पल्स थेरेपी) के लिए एक अन्य विशेषज्ञ के पास भेजा गया। इस दौरान मुझे रोजाना 1-2 घंटे ऑक्सीजन थेरेपी लेने की सलाह दी गई।
मैं एक साल तक इस थेरेपी पर थी। लेकिन मेरे फेफड़ों में जटिलताएं बढ़ गईं और मुझे अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी – यह तकलीफ सिर्फ सीढ़ियां चढ़ने के दौरान ही नहीं बल्कि मैं निष्क्रिय होती थी, उस समय भी होने लगी। एक छाती के विशेषज्ञ ने मुझे एक साल के लिए फेफड़ों में सुधार के लिए दवाएं दीं। उस दौरान मेरी पल्स थेरेपी बंद कर दी गई थी। एक साल बाद मुझे कुछ राहत मिली और मई 2014 में पल्स थेरेपी फिर से शुरू की गई। तब मैं रात में 6-8 घंटे ऑक्सीजन सपोर्ट पर थी।
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यह जून 2016 में खत्म हुआ और मैं करीब एक साल के लिए ओरल एंडोक्सन ले रही थी। स्थिति का प्रबंधन हो पा रहा था। नवंबर 2017 में मुझे फिर से सांस में दिक्कत होने लगी - एक रुमेटोलॉजिस्ट से परामर्श किया गया और उसने मुझे पीएएच का निदान दिया और मेरी पीएएच यात्रा वहीं से शुरू हुई।
जून 2018 में, अचानक मैं सांस नहीं ले पा रही थी और बेचैनी महसूस करने लगी और मुझे पूरे समय बिस्तर पर आराम करना था और साथ में 24*7 ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया।
तब से लेकर अब तक का सफर उतार-चढ़ाव से भरा है और सितंबर 2019 में भी मैं उसी हालत में हूं, लेकिन इस बीमारी से लड़ने की हिम्मत अभी खत्म नहीं हुई है। मुझे विश्वास होने लगा है कि जीवन में जो चुनौती आपको नष्ट नहीं करती वह आपको मजबूत बनाती है। मैंने जीवन में छोटी-छोटी बातों का महत्व भी सीखा है। हमें जीवन में स्वास्थ्य और अपने करीबी लोगों के प्यार जैसी चीजों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
स्क्लेरोडर्मा के लक्षणों और चुनौतियों ने आपकी जीवनशैली, कार्य जीवन, व्यक्तिगत फैसले इत्यादि को कैसे प्रभावित किया?
- पहली चुनौती जिसका मैं रोज सामना करती हूं वह है - मुझे अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए पर्याप्त तरह से स्वस्थ रहना होगा क्योंकि कई जटिल समस्याएँ हो सकती हैं – कुछ उदाहरण हैं - मांसपेशियों / शरीर में दर्द, तंत्रिका दर्द, रक्त परिसंचरण के मुद्दे जिन से दर्द और गैंग्रीन तक संभव है, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल मुद्दों, फेफड़ों की जटिलताओं के कारण सांस फूलना, दिल पर दबाव के कारण दिल की पैल्पिटेशन इत्यादि। इस सब को संभालना अपने आप में एक फुल-टाइम काम है।
- मैं कोई भारी काम नहीं कर सकती, जैसे कि रसोई में खाना पकाने का काम भी अधिकतम 30 मिनट ही कर सकती हूँ। मैं पहले खाना बनाती थी, लोगों को आमंत्रित करती थी, बाहर जाती थी, गाड़ी चलाती थी - ये सब बंद हो गया है। कुछ कदम चलना भी अब दर्दनाक है, ऑक्सीजन सिलिंडर साथ लूं, तब भी। इस सब का सीधा सा मतलब यह है कि मुझे अपने दैनिक जीवन के लिए भी अब मदद की ज़रूरत है।
- एक और चुनौती मेरे काम-काजी जीवन को लेकर है। जब मेरा निदान किया गया था, तो मैं फुल-टाइम काम कर रही थी। उसके बाद की 10 वर्षों की अवधि में मैंने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है और कभी कुछ वर्षों के लिए काम किया है, कभी काम बंद कर दिया है। अब मैं जिस सपोर्ट ग्रुप (सहायता समूह) का नेतृत्व कर रही हूं उसके लिए मैं प्रतिदिन कुछ घंटे काम करती हूं।
- जब आपको खुद ही आस-पास के लोगों से बहुत अधिक समर्थन की आवश्यकता होती है, ऐसे में मेरे लिए अपने परिवार की देखभाल करना मुश्किल है।
क्या भावनात्मक रूप से अपनी स्थिति का सामना करना कठिन रहा है?
भावनात्मक रूप से यह एक उतार-चढ़ाव से भरे रोलर कोस्टर जैसा रहा है। स्क्लेरोडर्मा होने का मतलब है कि आप साधारण काम भी नहीं कर पाते- जैसे खाना पकाना, गाड़ी चलाना, अपनी सोशल लाइफ बरकरार रखना (क्योंकि आप पहले की तरह बाहर नहीं जा सकते हैं या लोगों को आमंत्रित नहीं कर सकते हैं) । और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अब अपने पेशे में काम नहीं कर सकते।
एक साल पहले नौकरी छोड़ने के बाद मुझे कई बार अकेलेपन, अवसाद, चिंता और आत्म-मूल्य के मुद्दों का सामना करना पड़ा। ऐसा लग रहा था कि मैंने अपनी पहचान पूरी तरह खो दी है।
सामाजिक कलंक एक और पहलू है जिस के कारण मुझे शुरू में तनाव होता था खासकर क्योंकि आप अलग दिखने लगते हैं, आपका व्यक्तित्व बदल जाता है, आप पहले की तरह सक्रिय नहीं होते हैं। साथ ही, भारत जैसे समाज में अविवाहित होना, खासकर स्वास्थ्य कारणों से, समाज में अलग तरह से देखे जाने का एक और पहलू है।
लेकिन धीरे-धीरे, धैर्य रखते हुए, लगातार आपको जीवन के सूत्रों को फिर से संभालना होगा और आगे बढ़ना होगा। साथ ही, मेरे सपोर्ट ग्रुप के मिशन से मुझे प्रेरणा मिलती है।
क्या आपके परिवार में स्क्लेरोडर्मा या किसी अन्य ऑटोइम्यून डिजीज का इतिहास रहा है?
मेरे परिवार के किसी को भी स्क्लेरोडर्मा नहीं है। लेकिन मेरी मां को हाइपोथायरायड है।
क्या आपने अपनी स्थिति के कारण अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव किए हैं? इसने आपके जीवन के दृष्टिकोण और महत्वाकांक्षाओं को कैसे बदला है?
यदि आपको कोई चिरकालिक ऑटोइम्यून बीमारी है तो जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी हैं: -
- मैंने व्यायाम/ योग को अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाया है। मैं सप्ताह में 4-5 दिन व्यायाम जरूर करती हूँ अगर इतनी बीमार न हूँ कि बिस्तर से ही न उठ पाऊँ।
- मैं अपने काम के बीच में आराम करती हूं ताकि मेरी सांस फूले नहीं और मेरी हृदय गति ज्यादा न बढ़े।
- मैं ज्यादा नहीं चलती; जब मैं अस्पताल जाती हूं तो व्हीलचेयर की मदद लेती हूँ।
- ज्यादातर घर का बना सामान्य खाना ही खाएं।
- थोड़े-थोड़े अंतराल पर छोटे-छोटे भोजन करें, दिन में केवल 1-2 कप चाय लें, रात का भोजन सोने से कम से कम 2-3 घंटे पहले लें।
- हर दिन एक निर्धारित समय पर ही सोएं और कोशिश करें कि रात में कटऑफ समय के बाद टीवी/ लैपटॉप/ फोन का इस्तेमाल न करें।
- जीवन की छोटी-छोटी चीजों को देखें, उनका आनंद उठाएं, उनके लिए आभार महसूस करें।
- मैं एक समय में एक दिन ही जीती हूँ, अनावश्यक रूप से भविष्य की चिंता नहीं करती।
- मेरा रूप, मेरे शरीर के फूले रहने से मैं अब परेशान नहीं होती। अगर मैं बाहर जा रही हूं, तो दिन के ऊर्जा स्तर के आधार पर, मैं अच्छी तरह से तैयार होती हूँ जो मुझे बहुत आत्मविश्वास देता है।
- मेरी अविवाहित अवस्था पर लोगों का अनावश्यक घूरना अब मुझे परेशान नहीं करता है।
आप किन विशेषज्ञों से सलाह लेती हैं ? अनेक विशेषज्ञों के साथ काम करने में क्या जुड़ी चुनौतियाँ हैं? स्क्लेरोडर्मा के प्रबंधन करने के लिए आप किन संसाधनों का उपयोग करती हैं?
मैं इन विशेषज्ञों से सलाह लेती हूं:-
- सामान्य चिकित्सक (जीपी, जनरल प्रैक्टिशनर)- रोज-रोज अनेक मेडिकल समस्याओं के कारण होने वाली स्थितियों के प्रबंधन में मेरी मदद करने के लिए।
- रुमेटोलॉजिस्ट: - मेरा प्राथमिक चिकित्सक - मेरी स्थिति को संभालने वाले मुख्य चिकित्सक - आमतौर पर हर 2-3 महीने में मिलती हूँ
- पल्मोनोलॉजिस्ट: - आईएलडी (इंटरस्टिशियल लंग डिजीज) का पता चलने के बाद, वे मेरे दूसरे विशेषज्ञ हैं और आमतौर पर हर कुछ महीनों में उनसे सलाह लेनी होती हैं।
- हृदय रोग विशेषज्ञ: - पीएएच (पल्मोनरी आर्टीरियल हाइपरटेंशन) का निदान होने के बाद, इस विशेषज्ञ से भी सलाह लेनी होती है, आमतौर पर हर कुछ महीनों में।
- वैस्कुलर सर्जन: - रक्त के प्रवाह में कमी के परिणामस्वरूप उंगली में अलसर हो जाते हैं जिन्हें प्रबंधित करने के लिए एक वैस्कुलर सर्जन की आवश्यकता होती है। जरूरत के अनुसार सलाह लेती हूँ।
- फिजियोथेरेपिस्ट: - शरीर के अंगों में अत्यधिक दर्द को यदि व्यायाम के साथ स्वयं प्रबंधित नहीं कर पाऊँ, तो आवश्यकता अनुसार फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा प्रबंधित करना होता है।
कई विशेषज्ञों के साथ काम करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि जहां तक उपचार योजना का संबंध है, उन सभी को आपस में बात करके उपचार तय करना चाहिए और उन सभी का एक ही उद्देश्य होना चाहिए - रोगी के जीवन की गुणवत्ता को किसी भी तरह से बेहतर बनाना। उन्हें रोगी को सिर्फ एक शोध का साधन नहीं समझना चाहिए।
ऐसी कुछ सामान्य चुनौतियों के बारे में बताएं जिनका आमतौर पर रोगियों को सामना करना पड़ता है और इनके बारे में अपनी सलाह दें
रोगियों के सामने आने वाली सामान्य चुनौतियाँ हैं: -
- आम जनता और चिकित्सकों में इस बीमारी के बारे में जागरूकता और जानकारी की बहुत कमी है।
- कुछ साल पहले तक भारत में इसके लिए कोई सपोर्ट ग्रुप (सहायता समूह) उपलब्ध नहीं था। बीमारी के बारे में बात करने और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए किसी के न होने के कारण रोगियों के पास रोग के प्रबंधन के लिए जानकारी और साधन नहीं थे और वे खोया-खोया महसूस करते थे।
- हर रोगी की स्थिति अलग होती है; हो सकता है कि आपको अपने जैसे लक्षणों और रोग की चरण वाला कोई अन्य रोगी न मिले। सहायता समूह में भी अपने जैसे लोगों को ढूंढना एक चुनौती बन जाता है।
- बीमारी के प्रबंधन के बारे में यह सुनकर चिंता होती है कि यह बीमारी आजीवन रहेगी और उपचार पूरे जीवन चलेगा।
- इलाज का खर्च रोगियों के लिए एक अन्य चिंता का विषय है
- रोग से सामाजिक कलंक जुड़ा है क्योंकि इस के कारण हुए चेहरे और शरीर के अन्य अंगों पर शारीरिक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं।
- इस रोग की जटिलताएं अकसर चिंता और अवसाद उत्पन्न करती हैं, जिससे इलाज मुश्किल हो जाता है क्योंकि स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ दिमाग चाहिए और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग उपचार में बेहतर परिणाम दिखाते हैं।
- एक जीवन साथी से जुड़े रहना भी एक चुनौती है क्योंकि आपके जीवन साथी को आपके शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में सक्रिय भूमिका निभानी होती है।
- गर्भवती होना एक चुनौती हो सकती है, हालांकि चिकित्सकीय रूप से यह असंभव नहीं है, क्योंकि गर्भ धारण की कोशिश करते समय रोगी को एक निश्चित अवधि के लिए दवाओं को बंद करना होता है।
आपके परिवार ने आपको कैसे सपोर्ट किया है? आपके दोस्तों ने आपके साथ कैसा व्यवहार किया?
भगवान की कृपा से, निदान से लेकर आज तक, मुझे परिवार से काफी सहायता मिली है। शुरू में उनके लिए यह समझना मुश्किल था कि मैं पारिवारिक समारोहों में शामिल क्यों नहीं हो रही हूँ, और मैं लोगों से मिलने अपने कमरे से बाहर क्यों नहीं आती। धीरे-धीरे वे मेरी स्थिति को समझने लगे और वे इस बीमारी की अनिश्चितता को भी समझने लगे।
वे शायद इस स्थिति से उत्पन्न सब जटिलताओं को ठीक से नहीं समझते हैं लेकिन मुझे इमरजेंसी में और अत्यधिक दर्द में देखकर, वे हर संभव तरीके से मेरा समर्थन करने की कोशिश करते हैं। पिछले 10 वर्षों में उन्होंने मुझे इस बीमारी से लड़ने के लिए पर्याप्त समर्थन, शक्ति और संसाधन दिए हैं और यह केवल उनकी वजह से ही है कि मैं पूरे भारत में रोगियों की मदद करने के लिए एक सपोर्ट ग्रुप शुरू कर पाई हूँ।
मेरे बहुत से दोस्तों को मेरी मेडिकल स्थिति के बारे में ठीक से पता नहीं है। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं कि मुझे फेफड़ों की गंभीर जटिलताएं हैं, जिसके कारण मैं ज्यादातर घर पर हूं, और उनमें से केवल कुछ ही मेरी पूरी सही स्थिति जानते हैं। वे वही हैं जिनके साथ मैं बात करने और साथ-साथ समय बिताने के लिए उत्सुक रहती हूं। जब से मैं 24*7 ऑक्सीजन सपोर्ट पर हूँ और मेरा चलना-फिरना सीमित हो गया है, वे मेरे इस प्रतिबंधित जीवन में रोशनी की किरण हैं क्योंकि वे मुझसे मिलने के लिए, मुझे मुसकुराते देखने के लिए समय निकालते हैं और ड्राइव करके एक घंटे आने और एक घंटा वापस जाने के लिए तैयार हैं।
मैं 42 साल की हूं, स्क्लेरोडर्मा इंडिया की सह-संस्थापक। मैं एक एमबीए हूं, और लगभग 13 वर्षों के अनुभव वाली सॉफ्टवेयर कंसलटेंट हूं। मैंने कॉरपोरेट सेक्टर के साथ-साथ स्टार्टअप्स में भी विभिन्न पदों पर काम किया है। पिछले 10 वर्षों से एक स्क्लेरोडर्मा रोगी होने के नाते, मैं अन्य स्क्लेरोडर्मा रोगियों की दुर्दशा के बारे में जानती हूँ। भारत में इस बीमारी के बारे में जागरूकता की कमी ने मुझे कुछ साल पहले एक साथी के साथ इस नॉट-फॉर-प्रॉफ़िट ट्रस्ट / सोसाइटी को शुरू करने के लिए प्रेरित किया।